Monday, January 18, 2016

A Best and Heart Touching Novel Suggested by MM (My First Novel)



Please must read..it's very heart touching love story...

भगवान् विष्णु के दस अवतार

        
1.    मत्स्य अवतार – 





      एक बार राजा सत्यव्रत कृतमाला नदी के तट पर तर्पण कर रहे थे तो एक छोटी मछली उन की अंजली में आकर विनती करने लगी कि वह उसे बचा लें। राजा सत्यव्रत ने एक पात्र में जल भर कर उस मछली को सुरक्षित कर दिया किन्तु शीघ्र ही वह मछली पात्र से भी बड़ी हो गयी। राजा ने मछली को क्रमशः तालाब, नदी और अंत में सागर के अन्दर रखा पर हर बार वह पहले से भी बड़े शरीर में परिवर्तित होती गयी। अंत में मछली रूपी विष्णु ने राजा सत्यव्रत को एक महाभयानक बाढ़ के आने से समस्त सृष्टि पर जीवन नष्ट हो जाने की चेतावनी दी।  तदन्तर राजा सत्यव्रत ने एक बड़ी नाव बनवायी और उस में सभी धान्य, प्राणियों के मूल बीज भर दिये और सप्तऋषियों के साथ नाव में सवार हो गये। मछली ने नाव को खींच कर पर्वत शिखर के पास सुरक्षित पहँचा दिया। इस प्रकार मूल बीजों और सप्तऋषियों के ज्ञान से महाप्रलय के पश्चात सृष्टि पर पुनः जीवन का प्रत्यारोपन हो गया। इस कथा का विशलेशन हज़रत नोहा की आर्क के साथ किया जा सकता है जो बाईबल में संकलित है। यह कथा डी एन ऐ सुरक्षित रखने की वैज्ञानिक क्षमता की ओर संकेत भी करती है जिस की सहायता से सृष्टि के विनाश के बाद पुनः उत्पत्ति करी जा सके।

2.    कुर्मा अवतार –


      महाप्रलय के कारण पृथ्वी की सम्पदा जलाशाय़ी हो गयी थी। अतः भगवान विष्णु ने कछुऐ का अवतार ले कर सागर मंथन के समय पृथ्वी की जलाशाय़ी सम्पदा को निकलवाया था। वैज्ञानिक भी कहते हैं कि आईस ऐज के बाद सृष्टि का पुनरर्निमाण हुआ था। पौराणिक सागर मंथन की कथानुसार सुमेरु पर्वत को सागर मंथन के लिये इस्तेमाल किया गया था। माऊंट ऐवरेस्ट का ही भारतीय नाम सुमेरू पर्वत है तथा नेपाल में उसे सागर मत्था कहा जाता है। जलमग्न पृथ्वी से सर्व प्रथम सब से ऊँची चोटी ही बाहर प्रगट हुयी होगी। यह तो वैज्ञानिक तथ्य है कि सभी जीव जन्तु और पदार्थ सागर से ही निकले हैं। अतः उसी घटना के साथ इस कथा का विशलेशन करना चाहिये।

3.    वराह अवतार – 


      भगवान विष्णु ने दैत्य हिरणाक्ष का वध करने के लिये वराह रूप धारण किया था तथा उस के चुंगल से धरती को छुड़वाया था। पौराणिक चित्रों में वराह भगवान धरती को अपने दाँतों के ऊपर संतुलित कर के सागर से बाहर निकाल कर ला रहे होते हैं। वराह को पूर्णतया वराह (जंगली सूअर) के अतिरिक्त कई अन्य चित्रों में अर्ध-मानव तथा अर्ध-वराह के रूप में भी दर्शाया जाता है। वराह अवतार के मानव शरीर पर वराह का सिर और चार हाथ हैं जो कि भगवान विष्णु की तरह शंख, चक्र, गदा और पद्म लिये हुये दैत्य हिरणाक्ष से युद्ध कर रहे हैं। विचारनीय वैज्ञानिक तथ्य यह है कि सभी प्राचीन चित्रों में धरती गोलाकार ही दर्शायी जाती है जो प्रमाण है कि आदि काल से ही हिन्दूओं को धरती के गोलाकार होने का पता था। इस अवतार की कथा का सम्बन्ध महाप्रलय के पश्चात सागर के जलस्तर से पृथ्वी का पुनः प्रगट होना भी है।

4.    नर-सिहं अवतार – 




      भगवान विष्णु ने नर-सिंह (मानव शरीर पर शेर का सिर) के रूप में अवतरित  हो कर दैत्यराज हिरण्यकशिपु का वध किया था जिस के अहंकार और क्रूरता ने सृष्टि का समस्त विधान तहस नहस कर दिया था। नर-सिंह एक स्तम्भ से प्रगट हुये थे जिस पर हिरण्यकशिपु ने गदा से प्रहार कर के भगवान विष्णु की सर्व-व्यापिक्ता और शक्ति को चुनौती दी थी। यह अवतार इस धारणा का प्रतिपादन करता है कि ईश्वरीय शक्ति के लिये विश्व में कुछ भी करना असम्भव नहीं भले ही वैज्ञानिक तर्क से ऐसा असम्भव लगे।

5.    वामन अवतार – 




      वामन अवतार के रूप नें भगवान विष्णु मे दैत्यराज बलि से तीन पग पृथ्वी दान में मांगी थी।  राजा बलि ने दैत्यगुरू शुक्राचार्य के विरोध के बावजूद जब वामन को तीन पग पृथ्वी देना स्वीकार कर लिया तो वामन ने अपना आकार बढ़ा लिया और दो पगों में आकाश और पाताल को माप लिया। जब तीसरा पग रखने के लिये कोई स्थान ही नहीं बचा तो प्रतिज्ञा पालक बलि ने अपना शीश तीसरा पग रखने के लिये समर्पित कर दिया। विष्णु ने तीसरे पग से बलि को सुतल-लोक में धंसा दिया परन्तु उस की दान वीरता से प्रसन्न हो कर राजा बलि को अमर-पद भी प्रदान कर दिया। आज भी बलि सुतुल-लोक के स्वामी हैं। दक्षिण भारत में इस कथा को पोंगल त्योहार के साथ जोडा जाता है।

6.    परशुराम अवतार – 





      परशुराम का विवरण रामायण तथा महाभारत दोनो महाकाव्यों में आता है। वह ऋषि जमदग्नि के पुत्र थे और उन्हों ने भगवान शिव की उपासना कर के एक दिव्य परशु (कुलहाड़ा) वरदान में प्राप्त किया था। एक बार राजा कृतवीर्य अर्जुन सहस्त्रबाहु अपनी सैना का साथ जमदग्नि के आश्रम में आये तो ऋषि ने उन का आदर सत्कार किया। ऋषि ने सभी पदार्थ कामधेनु दिव्य गाय की कृपा से जुटाये थे। इस से आश्चर्य चकित हो कर कृतवीर्य ने अपने सैनिकों को ज़बरदस्ती ऋषि की गाय को ले जाने का आदेश दे दिया। अंततः परशुराम ने कृतवीर्य तथा उस की समस्त सैना का अपने परशु से संहार किया। तदन्तर कृतवीर्य के पुत्रों ने ऋषि जमदग्नि का वध कर दिया तो परशुराम ने कृतवीर्य और समस्त क्षत्रिय जाति का विनाश कर दिया और पूरी पृथ्वी उन से छीन कर ऋषि कश्यप को दान कर दी। सम्भवतः बाद में कश्यप ऋषि के नाम से ही उन के आश्रम के समीप का सागर कश्यप सागर (केस्पीयन सी) के नाम से आज तक जाना जाता है। पूरा कथानांक  प्रचीन इतिहास अपने में छुपाये हुये है। परशुराम अवतार राजाओं के अत्याचार तथा निरंकुश्ता के विरुध शोषित वर्ग का प्रथम शक्ति पलट अन्दोलन था। परशुराम अवतार ने शासकों को अधिकारों के दुरुप्योग के विरुध चेताया और आज के संदर्भ में भी इसी प्रकार के अवतार की पुनः ज़रूरत है।

7.    राम अवतार –





      परशुराम अवतार राजसत्ता के दुरुप्योग के विरुध शोषित वर्ग का आन्दोलन था तो भगवान विष्णु ने ऐक आदर्श राजा तथा आदर्श मानव की मर्यादा स्थापित करने के लिये राम अवतार लिया। राम का चरित्र हिन्दू संस्कृति में एक आदर्श मानव, भाई, पति, पुत्र के अतिरिक्त राजा के व्यवहार का भी कीर्तिमान है। अंग्रेजी साहित्य के लेखक टोमस मूर ने पन्द्रवीं शताब्दी में आदर्श राज्य के तौर पर एक यूटोपिया राज्य की केवल कल्पना ही करी थी किन्तु राम राज्य टोमस मूर के काल्पनिक राज्य से कहीं अधिक वास्तविक आदर्श राज्य स्थापित हो चुका था। राम का इतिहास समेटे रामायण विश्व साहित्य का प्रथम महाकाव्य है।

8.    कृष्ण अवतार –





      कृष्ण अवतार का समय आज से लगभग 5100 वर्ष या ईसा से 3102 वर्ष पूर्व का माना जाता है। कृष्ण ने महाभारत युद्ध में एक निर्णायक भूमिका निभाय़ी और उन के दुआरा गीता का ज्ञान अर्जुन को दिया जो कि संसार का सब से सक्ष्म दार्शनिक वार्तालाप है। कृष्ण के इतिहास का वर्णन महाभारत के अतिरिक्त कई पुराणों तथा हिन्दू साहित्य की पुस्तकों में भी है। उन के बारे में कई सच्ची तथा काल्पनिक कथायें भी लिखी गयी हैं। कृष्ण दार्शनिक होने के साथ साथ एक राजनीतिज्ञ्, कुशल रथवान, योद्धा, तथा संगीतिज्ञ् भी थे। उन को 64 कलाओं का ज्ञाता कहा जाता है और सोलह कला सम्पूर्ण अवतार कहा जाता है। कृष्ण को आज के संदर्भ में पूर्णत्या दि कम्पलीट मैन कहा जा सकता है।

9.    बुद्ध अवतार –





      विष्णु ने सिद्धार्थ गौतम बुद्ध के रूप में जन-साधारण को पशु बलि के विरुध अहिंसा का संदेश देने के लिये अवतार लिया। भारतीय शिल्प कला में सब से अधिक मूर्तियां भगवान बुद्ध की ही हैं। आम तौर पर बौध मत के अनुयायी गौतम बुद्ध के अतिरिक्त बुद्ध के और भी बोधिसत्व अवतारों को मानते हैं।

10.  कलकी अवतार –





      विष्णु पुराण में सैंकड़ों वर्ष पूर्व ही भविष्यवाणी की गयी है कि कलियुग के अन्त में कलकी महा-अवतार होगा जो इस युग के अन्धकारमय और निराशा जनक वातावरण का अन्त करे गा। कलकी शब्द सदैव तथा समय का पर्यायवाची है। कलकी अवतार की भविष्यवाणी के कई अन्य स्त्रोत्र भी हैं।
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